शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

सुनो !!


सुनो!!
मुझे चांद मत कहा करो
सिर्फ़ चार दिन की चांदनी बनकर
जिन्दगी में नहीं आना मुझे

उम्रभर के साथ की ख्वाहिश है
उजली-अंधेरी रातों में
दिन के तीखे धूप
और सांवली छांव में भी
ज़िन्दगी में हर पल तुम्हें पाना चाहूंगी

अब इस बात पर मुस्कराहट कैसी ??
गर मैंने मान लिया कि 
मैं तुम्हारी चांद हूं
तुम्हारे ही शब्दों में
खूबसूरती का नायाब संगम 
तो तुम खुद को सूरज कहोगे
वह सूरज जिससे चांद का वजूद पूरा है
जिससे ही चांद की चांदनी 
एक राहत है इक सुकून___

चांद-सूरज की जोड़ी 
यह सुनना शायद बहुत अच्छा लगे

पर तुम ही बताओ ?
सूरज -चांद का मेल हो सका है कभी?
एक को दिन ढलने का दुःख
दूसरे की रात निकलने की जल्दी

अब ऐसा भी क्या मिलना
जिस में आने-जाने की जल्दी लगी हो
एक-दूसरे से ज्यादा फ़िक्र-ओ-दुनिया
तब कहां पा सकूंगी ज़िन्दगी के हर पल तुम्हें ??

सोचो !! पा सकोगे हर पल का साथ..??
हमसफ़र बनना है हमें
और हमसाया भी
मुझ से तुम और तुम से मेरी पहचान तो तब होगी
चांद निकलने से लेकर सूरज ढलने तक 

इसलिए कहती हूं
मैं तुम्हारी ही हूं
छोड़ो ये नाम रखने के मरहले
क्यूं न मैं और तुम? 'हम' रहें
जब हर पल ही होगा हमारा साथ
तो क्या सूरज और क्या चांद...??

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