शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

आईना

जब भी मिलती हूं तुमसे
बस यही सोचती हूं
ये कौन है
जो मेरे जैसा नहीं है
फिर क्यूं मेरे जैसा लगता है??

सोचता है मेरी तरह
मेरी जैसी बातें करता है
मेरी खामोशी को जबां देकर
मेरी बातें कहता है

ये कौन है
जो दिल की गहराई में उतर आया है
और इनमें छुपी उदासी के
मोती ढूंढ लाया है
अब पलकों के साये में हर पल
वही रहता है 

लेकिन आज तुम्हारे सामने बैठकर
दिल को यूं महसूस किया
कि तुम इक आईना हो
जिसमें मेरा अक्स दिखता है...    

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