कहीं बेकिनार से रतजगे, कहीं ज़रनिगार से ख़्वाब दे
तेरा क्या उसूल है जिंदगी,मुझे कौन इसका जवाब दे
जो बिछा सकूं तेरे वास्ते , जो सजा सकूं तेरे रास्ते
मेरी दस्तरस में सितारे रख,मेरी मुट्ठियों में गुलाब दे
ये जो ख्वाहिशों का परिंद है,इसे मौसमों से गर्ज़ नहीं
ये उड़ेगा अपनी मौज में , इसे आब दे कि सराब दे
कभी यूं भी हों तेरे रूबरू , मैं नज़र मिला के ये कह सकूं
मेरी हसरतों को शुमार कर , मेरी ख्वाहिशों का हिसाब दे...
तेरा क्या उसूल है जिंदगी,मुझे कौन इसका जवाब दे
जो बिछा सकूं तेरे वास्ते , जो सजा सकूं तेरे रास्ते
मेरी दस्तरस में सितारे रख,मेरी मुट्ठियों में गुलाब दे
ये जो ख्वाहिशों का परिंद है,इसे मौसमों से गर्ज़ नहीं
ये उड़ेगा अपनी मौज में , इसे आब दे कि सराब दे
कभी यूं भी हों तेरे रूबरू , मैं नज़र मिला के ये कह सकूं
मेरी हसरतों को शुमार कर , मेरी ख्वाहिशों का हिसाब दे...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें