कुछ ख़्वाब हैं जिनको लिखना है
ताबीर की सूरत देनी है
कुछ लोग हैं उजड़े दिल वाले,
जिन्हें अपनी मुहब्बत देनी है
कुछ फूल है जिनको चुनना है
और हार की सूरत देनी है
कुछ अपनी नीन्दें बाकी हैं ,
जिन्हें बांटना है कुछ लोगों में
बेचैन-बेखबर से सपने
उनको भी तो राहत देनी है
कुछ वक्त है जिनको जीना है
मानूस सी खुश्बू लेनी है
कुछ पहचान हैं जो अधूरे से...
रिश्तों की तामीर देनी है
अपने-से ख्याल ,गैरों से सवाल
उनको भी हकीकत बननी है
ऐ उम्रे-रवां !
आहिस्ता चल...
अभी खासा क़र्ज़ चुकाना है
ऐ उम्र-ए-रवां !आहिस्ता चल___
अभी खासा क़र्ज़ चुकाना है ...... !!
कुछ पूरे-अधूरे ख्वाबों, अरमानों की एक ख़ूबसूरत दास्ताँ :)
जवाब देंहटाएंब्लॉग्गिंग की दुनिया में स्वागत है :)